Sunday, September 20, 2009

लिखा तो हमने भी लेकिन कलम में धार नहीं


लिखा तो हमने भी लेकिन कलम में धार नहीं
हुनर तो है मगर वो पेट की पुकार नहीं

विसाल-ओ-हिज्र की बातें उन्हें सुनते हैं
जिन्हें रोटी के सिवा कोई सरोकार नही

उन्हीं के दम से महकती है ये दुनिया सारी
उन्हीं को चैन से जीने का अख्तियार नहीं

उनकी सिसकी तो चीर देती है कलेजे को
मेरे अशआर मगर उतने धारदार नहीं

मगर वो आज भी हँसते हैं मुस्कुराते हैं
ये उनकी जीत है यारों ये उनकी हार नहीं

1 comment:

  1. apki kavitaom mein vividhta hai... samsyaon ki pahchn to sahityakar jald kar lete hain par samadhm v ho jae to docter kijaroort nahin hotiiiiiiiii

    ReplyDelete

सांवली लड़कियां

क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी बराबरी का हक़ पा जाती हैं  जम्बू...