Thursday, September 24, 2009

दुविधा




एक दिन सांप और बिच्छू दोनों लड़े थे
कौन है बड़ा इस बात पर अडे थे
पहले बिच्छू ने अपनी दलील सुनाई
डंक की विशेषता ऐसे बताई---
"मार कर के चला आता और दीखता भी नहीं हूँ
काम कर के चला आता और पिटता भी नहीं हूँ
हैं मानते लोग रहते न पड़े पाला मेरा
मैं ही हूँ श्रेष्ठ, भारी  है पाला मेरा"

सांप ने बिच्छू को बड़े जोर से फटकारा
खोल कर के फन बड़ी जोर से फुफकारा
"भाग ऐ तुच्छ तेरी औकात क्या है?
मुझ विषधर के सामने बिसात क्या है?
कीडे मकोडों में तुझे गिनते सभी हैं
क्या तेरी पूजा वे करते कभी हैं?
मेरे पुरखों का राज चहुँ ओर था
लोग कहते हैं उनका 'डायनों में शोर' था
इसलिए बंद कर अपनी व्यर्थ बात
मैं श्रेष्ठ, मैं कुलीन, मैं अभिजात"

इतने में नेपथ्य से एक सज्जन आये
सांप और बिच्छू बड़े हर्षाये
"कृपया दूर करें हमारी परेशानी
आप हैं नेता बड़े ग्यानी"

यह सुन कर नेता जी खिल पड़े
दिल उछला बल्लियों
होंठ उनके हिल पड़े---
"मैं तुम दोनों को देर से सुन रहा था
निर्णय का ताना बना बुन रहा था

(बिच्छू से )--- अरे ओ डंक वाले सुन बड़ा इतरा रहा है!
इंच भर की पूंछ क्या दिखला रहा है?
बलशालियों की इज्ज़त मिटटी में मिली है
तू क्या! कितनी यहाँ पूछें जली हैं

(सांप से)-- तू भी न ज्यादा फन दिखा, न फुफकार
लाठी न टूटे , तू मरे ऐसी हमारी मार

तुम्ही दोनों ही नहीं मैं भी यहाँ हूँ
अब तुम्हे बतलाऊंगा की मैं कहाँ हूँ

तुम हो विषैले ठीक है यह बात
पर मैं हूँ मानव उस पे नेता जात
तुम अगर काटो तो बच सकते हैं लोग
चिकित्सा से दूर हो सकते हैं रोग
किन्तु ये नज़रें जहाँ टेढी हुई हैं
शिखाएं भी सिमट कर एडी हुई हैं
क्या तैमूर क्या चंगेज  थे खूंखार
तूफ़ान से भी तेज़ मेरी जातियों के वार
अब कौन किससे है बड़ा ऐ मित्र
यह दुविधा है बड़ी विचित्र!"

पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो






















पेट की आग को आंसू से बुझाया न करो
ये कतरे खून के हैं इनको यूं जाया न करो

अगर होता है ज़ुल्म-ओ-ज़ोर तो लड़ना सीखो
सिर कटाया न करो गरचे झुकाया न करो

फिजा यहाँ की सुना है बड़ी बारुदी है
बातों बातों में अग्निबान चलाया न करो

गिरे आंसू तो कई राज़ छलक जायेंगे
अपनी आंखों को सरे आम भिगाया न करो

लोग कहने लगें कि "आप तो गऊ हैं मियां"
करो वादे मगर इतने भी निभाया न करो

एक बस्ती है जहाँ पर सभी फ़रिश्ते हैं
तुम हो इंसान देखो उस तरफ़ जाया न करो
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Tuesday, September 22, 2009

पोस्ट बॉक्स


ये तस्वीर मुखर्जी नगर (दिल्ली) के डाक घर के ठीक सामने वाले पोस्ट बॉक्स की है. क्या आपको इस पर कुछ कहना है?

Monday, September 21, 2009

अथ श्री सादगी पुराण .........


तो जनाब सादगी कि बात चलने लगी.
एक छोटी मूंछो वाले ठिगने आदमी ने कहा---
मैंने हजारों लोगो को बड़ी सादगी से मार डाला था. गैस चैंबर में. गोलियों में कौन खर्च करे.

नौकरशाह से मंत्री बने एक आदमी ने कहा--
हमारा देश तो सादगी पसंद शुरू से है. यहाँ के लोग इतने अमीर हैं कि अपने मवेशियों के लिए भी विमान में अलग सुविधा ले रखी है और कभी कभी उसमे खुद भी सफ़र कर लेते हैं. इसी को कैटल क्लास कह लेते हैं.

एक व्यापारी वर्ग के आदमी ने कहा--
मैं आजकल अपनी पत्नी को सिर्फ २०० करोड़ के ही बंगले गिफ्ट कर रहा हूँ, सादगी का ज़माना है भाई. और मंदी भी चल रही है.

ऐनक पहने और लाठी लिए एक बुजुर्ग कि तस्वीर जो पीछे लटकी हुई थी, अचानक कांपी और नीचे गिर पड़ी..............saadgi puran ..

Sunday, September 20, 2009

लिखा तो हमने भी लेकिन कलम में धार नहीं


लिखा तो हमने भी लेकिन कलम में धार नहीं
हुनर तो है मगर वो पेट की पुकार नहीं

विसाल-ओ-हिज्र की बातें उन्हें सुनते हैं
जिन्हें रोटी के सिवा कोई सरोकार नही

उन्हीं के दम से महकती है ये दुनिया सारी
उन्हीं को चैन से जीने का अख्तियार नहीं

उनकी सिसकी तो चीर देती है कलेजे को
मेरे अशआर मगर उतने धारदार नहीं

मगर वो आज भी हँसते हैं मुस्कुराते हैं
ये उनकी जीत है यारों ये उनकी हार नहीं

सांवली लड़कियां

क्या तुमने देखा है  उषाकाल के आकाश को? क्या खेतो में पानी पटाने पर मिट्टी का रंग देखा है? शतरंज की मुहरें भी बराबरी का हक़ पा जाती हैं  जम्बू...